________________ 270 3 स्तवनसंग्रह . . पार्श्वयक्षसे पूजित पाया, पद्मावती-धरणेद्रको भाया। वंदो ऐसे प्रभु प्यारा प्रभु प्यारा, जिनपति० // 4 // एक ही चित्ते नाथ पूजनसे, वार वार फिर ध्यान करनसे, होवे करम छुटकारा छुटकारा, जिनपति० // 5 // महाप्रभावी है इस जुगमें, पूरे मनोरथ सारे छिनमें, वंदे सौभाग्य दिल धारा दिल धारा, जि० // 6 // श्रीमहावीर जिन स्तवन . (राग कडखेकी) / तार हो तार प्रभु मुज सेवक भणी, जगतमा एटलुं सुजस लीजे / ' दास अवगुण भर्यों जाणी पोता तणो, दयानिधि दीन पर दया कीजे / तारहो० // 1 // राग-द्वेषे भयों मोह वैरी नडयो, लोकनी रीतिमां घणुये रातो। क्रोधवश धमधम्यो शुद्ध गुण नवि रम्यो, भम्यो भवमांहि हुँ विषयमातो। तार० // 2 // आदर्यु आचरण लोकउपचारथी, शास्त्र अभ्यास पण काइ कीघो। शुद्ध श्रद्धान वली आत्म अवलंबन विनु, तेहको कार्य तिणे को न सीधो। तार० // 3 //