________________ श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह 269 अनंतकाल मोहे भटकत वीत्यो, तुमसे आन पुकारो नाथ० // 2 // ऐसा कोण दयाल जगतमें, जासे कहिये तारो। अनेक जीव भवजलसे तारे, मुजकुं क्युं न संभारो / नाथ० // 3 // मिथ्यामत तम दूर करन कुं, सहस्रकिरण अवतारो / समकित शुद्ध ज्ञान निज दे के भवजल पार उतारो / नाथ० // 4 // वीस अधिक ओगणीस सातमें, माघ शुकल सोमवारो। बनारसीमें ओछच होवे, श्री संघ जयजयकारो। नाथ० // 5 // रामघाट प्रभु पास विराजे, समवसरण मनोहारो। हाथ जोड के अरज करत है, मोहन दास तुमारो // नाथ मेरी वीनतडी अवधारो० // 6 // ... श्री पार्श्वनाथ स्तवन (ढुंढ फिरा जग सारा० यह चाल) पार्श्वनाथ सुखकारा सुखकारा, जिनपति पूजो प्रेमसे / आं०। ज्ञान अनंतके है प्रभु धारी, कर्म रोग सब दूर निवारी, . सूरज परे तेज धारा तेज धारा, जिनपति० // 1 // भवसमुद्र में पडते बचावे, मोक्षमारग प्रभुजी दिखलावे, करे जगत उपगारा उपगारा, जिनपति० // 2 // कमठ हठीको दूर निवारा, जलती आगसे सर्प उगारा अहो दयाके प्रभु धारा प्रभु धारा, जिनपति० // 3 //