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________________ - 266 सग्रह 3 स्तवनसंग्रह पंचासरा पार्श्वनाथ स्तवन (प्रथम जिनेश्वर प्रणमिये-यह चाल) परमातम परमेश्वर जगदीश्वर जिनराज।। जगबंधव जगभाण बलिहारी तुमतणी,। ... भवजलधिमां रे जहाज // परमा० // 1 // तारक वारक मोहनो, धारक निजगुण ऋद्धि / अतिशयवंत भदंत रुपाली शिववधू, . परणी लही निजसिद्धि ॥परमा० // 2 // ज्ञान दर्शन अनंत छे, वली तुज चरण अनंत। एम दानादि अनंत क्षायिक भावे श्रया, गुण ते अनंता अनंत ॥परमा० // 3 // बत्तीस वरण समाय छे, एकज श्लोकमझार / एक वर्ण प्रभु तुज न माये जगतमां, केम करी थुणिये उदार परमा // 4 // तुज गुण कोण गणी शके जो पण केवल होय / आविर्भाव तुज सयल गुण माहरे, प्रच्छन्नभावथी जोय // परमा० // 5 // श्री पंचासरा पासजी, अरज करुं एक तुज / आविर्भावथी थाय दयाल कृपानिधि, .. करुणा कीजे जी मुज ॥परमा० // 6 //
SR No.004391
Book TitleJain Gyan Gun Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyavijay
PublisherKavishastra Sangraha Samiti
Publication Year1936
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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