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________________ श्रीजैनशान-गुणसंग्रह 253 श्री शांतिनाथस्तवन (गजल कवाली) अजब है शांतिजिन दर्शन, हमारा होत मन परसन / आंकणी। मूरत क्या मोहनी प्यारी, भरी समतारसे भारी / जिगर में प्रेमरस भरती, हमारे पाप मल हरती / - अजब है० // 1 // पडा संसारबंधन में, गई थी सूध बुध मेरी / सूरत तेरी निहाली मैं, छूटा हूं ना लगी देरी / . अजब है० // 2 // कमल पर ज्युं लगा भमरा; लुभाया तेरी सूरत में। बिठा ले चरण में अपने, सुनी ले अर्ज भी दिल में। . अजब है० // 3 // कृपादृष्टि अहा कीनी, कबूतरपे दयाभीनी। विजय सोभाग्य को तारो, दुखों के फंद सब टारो / ____ अजब है // 4 //
SR No.004391
Book TitleJain Gyan Gun Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyavijay
PublisherKavishastra Sangraha Samiti
Publication Year1936
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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