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________________ 252 3 स्तवनसंग्रह छिल्लरमें रति कबहुं न पावे, जे झीले जल गंगा यमुना / तुम सम हम शिर नाथ न थाशे, कर्म अधुना दूना धूना / क्षण // 2 // मोहलडाईमें तेरी सहाई, तो खिणमें छिन्न छिन्न कटुना। नाही घटे प्रभु आना कुंना, अचिरासुत पति मोक्षवधूना / क्षण० // 3 // ओरकी पासमें आश न करते, चार अनंत पसाय करुंना।। क्यों कर मागत पास धतूरे, युगलिक याचक कल्पतरुना / क्षण // 4 // ध्यान खडग वर तेरे आसंगे; मोह डरे सारी भीक भरूंना। ध्यान अरूपी तो सोई अरूपी, भक्ते ध्यावत ताना तूना / क्षण० // 5 // अनुभव रंग वध्यो उपयोगे, ध्यानसुपान में काथा चूना / चिदानंद झकझोल घटासे, श्री शुभवीरविजय पडिपुन्ना / क्षण // 6 //
SR No.004391
Book TitleJain Gyan Gun Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyavijay
PublisherKavishastra Sangraha Samiti
Publication Year1936
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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