________________ ર૪૮ . . 3 स्तवनसंग्रह . . श्री धर्मनाथ जिन स्तवन . धर्म जिनेसर गाउं रंगसुं, . भंग म पडशो हो प्रीत जिनेसर / बीजो मनमंदिर आणुं नही, ए अम कुलवट रीत जिनेसर / धर्म० // 1 // धरम धरम करतो जग सहु फिरे, धर्म न जाणे हो मर्म जिनेसर / धर्म जिनेसर चरण ग्रह्या पछी, कोइ न बांधे हो कर्म जिनेसर / धर्म० // 2 // प्रवचनअंजन जो सद्गुरु करे, देखे परम निधान जिनेसर / ' हृदयनयण निहाले जग धणी, महिमामेरुसमान जिनेसर / धर्म० // 3 // दोडत दोडत दोडत दोडियो, . जेती मननी रे दोड जिनेसर। प्रेम प्रतीत विचारो इकडी, गुरुगम लेजो रे जोड जिनेसर / धर्म० // 4 // एक परखी किम प्रीति परवडे, उभय मिल्यां होय संधि जिनेसर / हुं रागी हुं मोहे फंदियो, तूं नीरागी निरबंध जिनेसर / धर्म० // 5 //