________________ 247 . श्रीजैनशान-गुणसंग्रह फल अनेकांत किरिया करी बापडा, - रडवडे चार गतिमांहि लेखे / धार० // 2 // गच्छना भेद बहु नयण निहालतां, तत्त्वनी वात करतां न लाजे / उदरभरणादि निजकाज करतां थकां, मोहनडिया कलिकाल राजें / धार० // 2 // वचननिरपेक्ष व्यवहार झूठो कह्यो, वचनसापेक्ष व्यवहार साचो। . वचननिरपेक्ष व्यवहार संसारफल, सांभली आदरी कांइ राचो / धार० // 4 // देव गुरु धर्मनी शुद्धि कहो केम रहे, केम रहे शुद्ध श्रद्धान आणो / शुद्ध श्रद्धान विण सर्व किरिया करी, छार पर लीपणुं तेह जाणो / धार० // 5 // पाप नही कोइ उत्सूत्र भाषण जिस्युं, धर्म नही कोइ जग सूत्र सरिखो। सूत्र अनुसार जे भविक किरिया करे, तेहy शुद्ध चारित्र परखो / धार० // 6 // एह उपदेशनो सार संक्षेपथी, . जे नरा चित्तमें नित्य ध्यावे / ते नरा दिव्य बहुकाल सुख अनुभवी, नियत आनंदघनराज पावे / धार० // 7 //