________________ 240 - 3 स्तवनसंग्रह . .. दीन कह्या विण दानथी रे, दातानी वाधे माम, मनना मान्या। जल दिये चातक खीजवी रे, मेघ हुआ तिणे श्याम, मनना मान्या // 3 // __ पियु पियु करी तुमने जपुं रे, हुं चातक तुमे मेह, मनना मान्या / एक लहेरमां दुख हरो रे, वाधे बमणो नेह, मनना मान्या // 4 // मोडं वहेलुं आपq रे, तो शी ढील कराय, मनना मान्या। वाचक जस कहे जगधणी रे, तुम तूठे सुख थाय, मनना मान्या // 5 // श्री सुविधिनाथ स्तवन ( साहिबा मोतीडो हमारो यह देशी) अरज सुणो एक सुविधि जिनेसर, परम कृपानिधि तुमें परमेसर / माहिबा सुज्ञानी जोवो तो वात छे मान्यानी / आं० / कहेवाओ पंचम चरणना धारी, किम आदरी अश्वनी असवारी / सा० // 1 // छो त्यागी शिव वास वसो छो, दृढरथसुत रथे केम बेसो छो सा०॥ आंगी प्रमुख परिग्रहमां जो पडशो, हरिहरादिकने किण विध नडशो, सा० // 2 //