________________ 239 श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह श्री सुपार्श्वजिन स्तवन ( देशी आछेलाल) श्रीसुपास जिनराज, तूं त्रिभुवन शिरताज / आज हो छाजे रे ठकुराई प्रभु तुज पदतणी जी // 1 // अतिशय सहजना च्यार, कर्म खप्यांथी अग्यार। आज हो कीधा रे ओगणीस सुरगण भासुरें जी // 2 // वाणी गुण पांत्रीस, प्रतिहारज जगदीश / आज हो राजे रे दीवाजे छाजे आठशुं जी // 3 // दिव्यध्वनि सुरफूल, चामर छत्र अमूल / आज हो राजे रे भामंडल गाजे दुंदुभि जी // 4 // सिंहासन अशोक, बेठा मोहे लोक / आज हो स्वामी रे शिवगामी वाचकजस थुण्यो जी // 5 // श्री चंद्रप्रभजिन स्तवन - श्री चंद्रप्रभ जिन साहिबा रे, तुमे छो चतुर सुजाण, मनना मान्या। सेवा जाणो दासनी रे, देशो पद निर्वाण, मनना मान्या / आवो आवो रे चतुर सुख भोगी, कीजे वात एकांत अभोगी गुण गोठे प्रगटे प्रेम, मनना० // 1 // - ओछु अधिकुं पण कहे रे, आसंगायत जेह, मनना मान्या। आपे फल जे अणकहे रे, गिरुओ साहिब तेह, मनना मान्या॥