________________ 236 3 स्तवनसंग्रह हुओ छिपे नहीं अधर अरुण, जिम खातां पान सुरंग / . पीवत भर भर प्रभु गुण प्याला, तिम मुज प्रेम अभंग, सो० // 4 // ढांकी इक्षु पलालशुं जी, न रहे लही विस्तार / वाचक जस कहे प्रभुतणो जी, तिम मुज प्रेम प्रकार, सो०॥५॥ सीनोर गाम सुमति जिन स्तवन (राग बलिहारी की) सुखकारी सुखकारी सुखकारी कृपानाथ हो जाउं वारी सुमति जिन सुमति सेवक दीजीये जी। दरिसन देव दीजे, कुमति को दूर कीजे / यही मागुं हुं हे दातारी, कृपानाथ हो० // 1 // कुमति ने कामण किया, मुझ को भरमाय दिया / इन से छुडा दो हे सरदारी कृपानाथ हो० // 2 // पंचम अवतार लिया, दुनिया को तार दिया। आशा पूरो कहुं हुं पुकारी, कृपानाथ हो० // 3 // निरादर नाही कीजे, बिरुद संभाल लीजे / तरण तारण हो हे अधिकारी, कृपानाथ हो० // 4 // सीनोरमंडण नामी, सुमति जिनेश्वर स्वामी / बेडी उतारो प्रभुजी हमारी, कृपानाथ हो० // 5 // निधि रस निधि चंदा, संवत् है सुखकंदा / . वीरविजयकुं आनंदकारी, कृपानाथ हो० // 6 // .