________________ - श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह 232 गुण पांत्रीसे अलंकरी कांइ, अभिनन्दनजिनवाण / संशय छेदे मनतणा प्रभु, केवल ज्ञाने जाण, तुमे० // 4 // चाणी जे जन सांभले ते, जाणे द्रव्य ने भाव / / निश्चय ने व्यवहार जाणे, जाणे निज पर भाव, तुमे // 5 // साध्य साधन भेद जाणे, ज्ञान ने आचार / हेय ज्ञेय उपादेय जाणे, तत्त्वातत्व विचार, तुमे० // 6 // नरक स्वर्ग अपवर्ग जाणे, थिर व्ययने उत्पाद / / राग द्वेष अनुबंध जाणे, उत्सर्ग ने अपवाद, तुमे० // 7 // निज स्वरूपने ओलखीने, अवलंबे स्वरूप / चिदानन्दघन आतमा ते, थाये निजगुणभूप, तुमे० // 8 // वाणीथी जिन उत्तम केरा, अवलंबे पदपद्म / नियमा ते परभाव तजीने, पामे शिवपुर सद्म, तुमे० // 9 // श्री सुमतिनाथ स्तवन सुमतिनाथ गुणशुं मिली जी, वाधे मुज मन प्रीति / तेल बिंदु जिम विस्तरे जी, जलमांहे भली रीति / सोभागी जिनशुं लागो अविहड रंग, आं० // 1 // सज्जनशुं जे प्रीतडी जी, छांनी ते न रखाय / परिमल कस्तूरीतणो जी, महिमांहे महकाय, सोभागी०॥२॥ आंगलिये नवि मेरु ढंकाये छाबडिये रवि तेज। अंजलिमां जिम गंग न माये, मुज मन तिम प्रभु हेज सो०॥३॥