________________ 234 3 स्तवनसंग्रह भूख्यां हो प्रभु भूख्यां मल्यां घृतपूर, . . तरश्यां हो प्रभु तरश्यां दिव्य उदक मल्यां जी। थाक्यां हो प्रभु थाक्यां मिल्यां सुखपाल, चाहतां हो प्रभु चाहतां सज्जन हेते मल्या जी // 4 // दीवो हो प्रभु दीवो निशा वन गेह, साथी हो प्रभु साथी थले जले नौका मिली जी। कलिजुगे हो प्रभु कलिजुगे दुल्लहो तुझ, दरिसन हो प्रभु दरिसन लह्यो आशा फली जी // 5 // वाचक हो प्रभु वाचक जस तुम दास, वीनवे हो प्रभु वीनवे अभिनन्दन सुणो जी। कहिये हो प्रभु कहियें म देजो छेह, देजो हो प्रभु देजो सुख दरिसणतणो जी // 6 // श्री अभिनन्दनजिन-वाणी महिमा स्तवन तुमे जोजो जोजो रे वाणीनो प्रकाश तुमे जोजो जोजोरे। उठे छे अखंड ध्वनि जोजने संभलाय / नर तिरय देव आपणी, सहु भाषाये समजाय, तुमे०॥१॥ द्रव्यादिक देखी करीने, नयनिक्षेपे जुत्त / भंग तणी रचना घणी काइ, जाणे सहु अद्भुत, तुमे०॥ पय सुधा ने इक्षुवारि हारी जाये सर्व। .. पाखंडी जन सांभलीने मूकी दिये गर्व, तुमे // 3 //