________________ ... श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह 233 तुमे स्वामी हुँ सेवाकामी, मुजरे स्वामी निवाजे / नहीं तो हठ मांडी मागतां, किण विध सेवक लाजे प्या०॥५।। ज्योते ज्योति मिले मत प्रीछो, कुण लहेशे कुण भजशे / साची भक्ति ते हंस तणी परे, खीर नीर मय करशे, प्या०॥६॥ उलग कीधी जे लेखे आवी, चरण भेट प्रभु दीधी। रूपविबुधनो मोहन पभणे, रसना पावन कीधी प्या० // 7 // श्री अभिनन्दनजिन स्तवन दीठी हो प्रभु दीठी जग गुरु तुझ, मूरति हो प्रभु मूरति मोहन वेलडी जी / मीठी हो प्रभु मीठी ताहरी वाणी, लागे हो प्रभु लागे जेसी सेलडी जी // 1 // जाणुं हो प्रभु जाणुं जन्म क़यत्थ, जो हुं हो प्रभु जो हुं तुम साथे मिल्यो जी / सुरमणि हो प्रभु सुरमणि पाम्यो हथ्थ, आंगणे हो प्रभु आंगणे मुझ सुरतरु फल्यो जी // 2 // जाग्या हो प्रभु जाग्या पुण्य अंकूर, मांग्या हो प्रभु मुह मांग्या पाशा ढल्या जी / वूठा हो प्रभु वूठा अमीरस मेह, नाठा हो प्रभु नाठा अशुभ शुभ दिन वल्या जी॥३॥