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________________ 237 श्रीजैनशान-गुणसंग्रह श्री पद्मप्रभ जिन स्तवन (देशी झुंचखडे की) श्री पद्मप्रभजिन सेविये रे, शिवसुंदरीभरतार कमल दल आंखडियां / मोहनशुं मन मोही रह्यं रे, रूपतणो नही पार भमुहधनु वांकडियां // 1 // अरुणकमलसम देहडी रे, जगजीवन जिनराय, वयण रस सेलडियां / त्रीस पूरव लख आउखु रे सारे वांछित काज मोहन सुरवेलडियां // 2 // सहियरो सवि टोले मिली रे, शोले सजी शणगार मिली सखि शेरडीयां / गुण गाती घुमरी दिये रे, करी चूडी खलकार, कमलमुख गोरडीयां // 3 // .. - मात सुसीमा उरे धर्यो रे, मुज दिलडामांहे देव, वस्यो दिन रातडीयां / कोसंबी नयरीतणो रे नाथ नमो नित्यमेव, सुणो सखि वातडीयां // 4 // ___ धनुष अढीशय शोभती रे, उंचपणे जगदीश, नमो साहेलडियां / रामविजय प्रभु सेवता रे, लहिये सयल जगीश वधे सुखवेलडियां // 5 //
SR No.004391
Book TitleJain Gyan Gun Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyavijay
PublisherKavishastra Sangraha Samiti
Publication Year1936
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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