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________________ 226 - 3 स्तवनसंग्रह श्रीऋषभदेव जिन स्तवन (राग माढ) प्रभु छो अविकारा, भुवन आधारा, ऋषभ प्रभु भगवान / दिल हरनारा, मोहनगारा, लागो छोप्यारा ऋषभ प्रभु भगवान ॥आं. अति उपगारी नाथ हमारा, भव भय भंजनहार / हाथ जोडी तुम पायमां रे, पडीयें स्वामी निहार रे, प्रभु दिल हरनारा // 1 // आदि पिता नृप आदि छो रे, आदि गुरु आदिदेव / सकल कला तुमने दर्शाई, नमिये देवाधिदेव रे, प्रभु० // 2 // केवल ज्ञान जे ताहरूं रे, चमके तेज़ अनंत / विश्व मांहि ते सघळे छवायु, नाथ नमो गुणवंत रे, प्रभु० // 3 // देव देवी मली अप्सरा रे, ठम ठम ठमके पाय / आनंद रस भर नाच करंती, तुम गुण रंगे गाय रे, प्रभु०।४। स्मरण मधुरं आपनुं रे, कष्ट सहु हरनार / एम जाणी तुम पाय पडे छे, हरखे सकल संसार रे, प्रभु०॥५॥ सर्व गुणी अरिहंत छो रे, वांछित फल दातार / विजयसौभाग्यना कष्ट निवारी, आपो शांति अपार रे। . प्रभु दिल हरनारा० // 6 //
SR No.004391
Book TitleJain Gyan Gun Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyavijay
PublisherKavishastra Sangraha Samiti
Publication Year1936
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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