________________ श्रीजैनशान-गुणसंग्रह 219 रोहिणी तप की स्तुति रोहिणी तप रंगे करो प्राणी, सकल सुमंग ल कारण जाणी, लाभ लहो गुणखाणी / अजित जिणंद नो जन्म ते जाणी, आवे __इंद्र अने इंद्राणी, भाव अधिक मन आणी // 1 // अतीत अनागत ने वर्तमान, च्यवन जन्म __ दीक्षा गुणखाण, केवल मुक्ति कल्याण / दश क्षेत्रे दाख्या जिन भाण, नक्षत्र रोहि__णी छे गुणखाण, आदरो भवि शुभजाण // 2 // पद्मप्रभुनी एहज वाणी, सुगंधकुमारे __साची जाणी, पर्षदा हर्ष भराणी / तप करी काया निर्मल कीधी, अजरामर पदवी जेणे लीधी, शिवरमणी वश कीधी // 3 // . शासन देवी सोले वखाण, जग उद्योत करे जिण भाण, आपे बुद्धि विनाण / रोहिणी राणी ए तप कीधो, भव त्रीजे सवि कारज सीधो, कीर्तिचन्द्र जस लीधो // 4 // श्री पर्युषणापर्व की स्तुति सत्तर भेदी जिन पूजा रचीने स्नात्र महोच्छव कीजे जी, ढोल ददामा भेरी नफेरी झल्लरी नाद सुणीजे जी।