________________ 220 . 2 स्तुतिसंग्रहः वीरजिन आगल भावना भावी मानवभव फल लीजे जी, पर्वपजूसण पूरव पुण्ये आव्या एम जाणीजे जी // 1 // मास पास वली दशम दुवालस चत्तारि अट्ट कीजे जी, उपर वली दश दोय करीने जिन चोवीस पूजीजे जी। वडा कल्पनो छठ करीने वीर चरित्र सुणीजे जी, पडवे ने दिन जन्म महोच्छव धवल मंगल वरतीजे जी // 2 // आठ दिवस लगे अमर पलावी अट्ठमनो तप कीजे जी, नागकेतुनी परे केवल लहिये जो शुभ भावे रहिये जी। तेलाधर दिन त्रण कल्याणक गणधर वाद वदीजे जी, पास नेमीसर अंतर त्रीजे ऋषभ चरित्र सुणीजे जी // 3 // बारसे सूत्र ने सामाचारी संवच्छरी पडिकमिये जी, चैत्य प्रवाडी विधिसुं कीजे सकल जन्तुने खमीजे जी / पारणाने दिन साहमीवच्छल कीजे अधिक वडाई जी, मानविजय कहे संकल मनोरथ पूरे देवी सिद्धाई जी॥४॥ इति स्तुति-संग्रहः।