________________ .. श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह निश्चय ने व्यवहार बेहुसुं आगम मधुरी वाणे जी। नरक तिर्यच गति दोय न होवे बीजने जे आराधे जी, द्विविध दया त्रस थावर केरी करतां शिवसुख साधे जी // 3 // बीज चंद परे भूषण भूषित दीपे निलक्ट चंदा जी, गरुड यक्ष नारी सुखकारी निर्वाणी सुखकंदा जी। बीज तणो तप करतां भविने समकित सानिध्यकारी जी, धीरविमल शिष्य कहे नय संघना विघ्न निवारी जी // 4 // पंचमी की स्तुति पांचमने दिन चोसठ इंद्रे नेमिजिन महोत्सव कीधो जी, रूपे रंभा राजीमतीने छंडी चारित्र लीधो जी। अंजनरत्नसम काया दीपे शंख लंछन सुप्रसिद्ध जी, केवल पामी मुक्ति पहोता सघला कारज सिद्ध जी // 1 // आबु अष्टाद ने तारंगा शत्रुजय गिरि सोहे जी, राणकपुरने पार्श्व शंखेश्वर गिरनारे मन मोहे जी / सम्मेतशिखर ने वली वैभारगिरि गोडी थंभण वंदो जी, पंचमीने दिन पूजा करतां अशुभ कर्म निकंदो जी // 2 // नेमि जिनेश्वर त्रिगडे बेठा पंचमी महिमा बोले जी, बीजा तप जप छ अति बहोला नही कोइ पंचमी तोले जी / पाटी पोथी ठवणी कवली नोकरवाली सारी जी, पंचमी- उजमणुं करता. लहिये शिववधू प्यारी जी // 3 //