________________ 213 - श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह सुरशैलशिखरे भवतु सुखदं पार्श्वजिनपतिमञ्जनम् // 1 // कट रेगिनि थोगिनि कटिति गिगद्दा धुधु कि धुट नट पाटवं, गुण गुणण गुण गण रणकि णे णे गुणण गुण गण गौरवम् / झझि झें कि झें झं झणण रण रण निजकि निज जन सज्जनाः, कलयंति कमला कलित कलिमलमकलमीशमहे जनाः // 2 // कि ट्रेंकि - - ठर्हि ठर्हिति ठहि पट्टा ताडयते, तल लोंकि लों लों खि खिनि डेंखि डेंखिनि वाद्यते / ॐ ॐ कि ॐॐ कथुगि कथुगिनि धोंगि धोंगिनि कलरवे, जिनमतमनंतं महिमतनुता नमत सुरनतमुत्सवे // 3 // खुं दांखि खुंदां खुखुड्दि खुंदां खुखुड्दि दो दो अंबरे, चाचपट चच पट रणकि णे में डणण . . डंबरे / तिहां सरगमपधुनि-निधपमगरस ससससस सुर सेवता, जिननाट्यरंगे कुशलमनिशं दिशतु शासन देवता // 4 // . अध्यात्मभित महावीरजिनस्तुति उठि सवेरे सामायिक लीधुं पिण बार[ नवि दीधुंजी, कालो कूतरो घरमांहे पेठो घी सघळु तेणे पीधुंजी। उठो ने वहूअर आलस मूकी ए घर आप संभालोजी, निजपति ने कहो वीरजिन पूजी समकित ने अजुआलोजी // 1 // बले बिलाडे झडप झंपावी उत्रेवडि सवि फोडीजी, चंचल छैयां वार्या न रहे त्राग भागी माल त्रोडीजी। तेह विणा रेटियो नवि चाले मौनभलं कोने कहियेजी