________________ 212 2 स्तुति-संग्रह श्रीपार्श्वनाथजिनस्तुति पास जिणंदा वामानंदा जब गरमे फली, सुपना देखे अर्थ विशेषे कहे मघवा मली। .. जिनवर जाया सुर हुलराया हुआ रमणीप्रिये, नेमिराजी चित्त विराजी विलोकित व्रत लिये // 1 // वीर एकाकी चार हजारे दीक्षा धुर जिनपति, पास ने मल्लि त्रयसत साये बीजा सहसे व्रती। षट्शत साथे संजम धरता वासुपूज्य जगधणी, अनुपम लीला ज्ञानरसीला देजो मुजने घणी // 2 // जिनमुख दीठी वाणी मीठी सुरतरु वेलडी, द्राख विहासे गइ वनवासे पीले रस सेलडी।' साकर सेती तरणा लेती मुखे पशु चावती, अमृत मीठं स्वर्गे दीर्छ सुरवधू गावती // 3 // गजमुखदक्षो वामन जक्षो मस्तके फणावली, चार ते बांही कच्छपवाही काया जस शामली। . चउकर प्रौढा नागारूढा देवी पदमावती, सोवन कांति प्रभुगुण गाती वीर घरे आवती // 4 // श्रीपार्श्वनाथजिनस्तुति दें दें कि धप मप धु धु मि धो धो धसकि धर धप धोरवं, दों दों कि दो दो द्रागदि द्रागड्दिकि द्रमकि द्रण रण द्रेणवम् / झझि झेंकि झें झें झणण रण रण निजकि निज जनरंजनं,