________________ श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह काउस्सम्ग ध्यानमुद्रा रही जेणे मोक्ष ज सीध्या। जक्ष गरुड समरूं सदा देवी निर्वाणी, भविक जीव तमे सांभलो ऋषभदासनी वाणी // 4 // गिरनार नेमिजिनस्तुति सुर असुर वंदित पायपंकज मयणमल्ल अक्षोभितं, घन सघन श्यामशरीरसुंदर शंख लंछन शोभितम् / शिवादेवि नंदन त्रिजगवंदन भविक कमल दिनेश्वरं, गिरनार गिरिवर शिखर वंदं नेमिनाथ जिनेश्वरम् // 1 // अष्टापदे श्री आदिजिनवर वीर पावा पुरिवरं, चंपापुरी श्रीवासुपूज्यजी नेमि रेवयगिरिवरम् / सम्मेत शिखरे वीस जिनवर मुक्ति पहोता मुनिवरं, चोवीस जिनवर तेह वंदू सयल संघ सुहंकरम् // 2 // अग्यार अंग उपांग बारे दश पयन्ना जाणिये, छ छेद ग्रंथ पसत्थअत्था चार मूल वखाणिये / अनुयोगद्वार उदार नंदीसूत्र जिनमत गाइये, वृत्ति चूरणि सूत्र आगम पंच चालीश ध्याइये // 3 // बिहुं दिशि वालक दोय जेहने सदा भवियण सुखकरं, दुख हरे अंबालुंबि सुंदर दुरिय दोहग अपहरं / गिरनारमंडण नेमिजिनवर चरणपंकज भयहरं, श्रीसंघ मंगल करे अंबादेवी देवे शुभ वरम् // 4 //