________________ // 7 // श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह 209 जस्स विलीणा सव्वे, रागद्दोसादओ दोसा // 1 // अन्नाणतमविणासण,-रविकप्पे कप्परुक्खतुल्लकरे / अज्झप्पधम्मकुसले, जिणचन्दे वंदिमो सिरसा.॥२॥ तिहुअणगिहगयवत्थु,-प्पयासपवणो कुमारुआगम्मो / एगंतसलहदाहो, जिणागमो दीवओ जयउ // 3 // सिरिवीरभत्तिभावा, गयपावा दलियविग्यसब्भावा / कल्लाणमग्गलाभ, जणस्स सिद्धाइआ कुणउ // 4 // इति मुनिवर्यश्रीकल्याणविजयविरचितः स्तुतिसंग्रहः समाप्तः। विविधस्तुतियाँ श्री ऋषभदेव जिन स्तुति . . प्रह उठी. बंदु ऋषभदेव गुणवंत, प्रभु बेठा सोहे समवसरण भगवंत / / त्रण छत्र बिराजे चामर ढाले इंद, जिनना गुण गावे सुरनरनारीना वृंद // 1 // बार परखदा बेसे इंद्र इंद्राणी राय, . . . . नव कमल रचे सुर जिहां ठविया प्रभु पाय / देव दुंदुभि वाजे कुसुम वृष्टि बहु हुंत, एवा जिन चोवीसे पूजो भवि एक चित्त // 2 // जिण जोजन भूमि वाणीनो विस्तार,