________________ अनंगपविट्ठसुत्ताणि सव्वदव्वाणं, णहं ओगाहलक्खणं // 9 // वत्तणालक्खणो कालो, जीवो उवओगलक्खणो / णाणेणं दंसणेणं च, सुहेण य दुहेण य // 10 ॥णाणं च दंसणं चेव, चरित्तं च तवो तहा / वीरियं उवओगो य, एयं जीवस्स लक्खणं // 11 // सद्दे धयारउज्जोओ, पहा छायाऽऽतवो इ वा / वण्णरसगंधफासा, पुग्गलाणं तु लक्खणं // 12 // एगत्तं च पुहत्तं च, संखा संटाणमेव य / संजोगा य विभागा य, पजवाणं तु लक्खणं // 13 // जीवाजीवा य बंधो य, पुण्णं पावाऽऽसवो तहा। संवरो णिजरा मोक्खो, संतेए तहिया णव // 14 // तहियाणं तु भावाणं, सम्भावे उवएसणं / भावेणं सद्दहंतस्स, सम्मत्तं तं वियाहियं // 15 // णिस्सग्गुवएसरई, आणारुई सुत्तबीयरुइमेव / अभिगम वित्थाररई, किरिया संखेव-धम्मरुई. // 16 // भूयत्थेणाहिगया, जीवाजीवा य पुण्णपावं च / सहसम्मुइयासवसंवरो य, रोएइ उ णिस्सग्गो // 17 // जो जिणदिढे भावे, चउविहे सद्दहाइ सयमेव / एमेव णण्णहत्ति य, स णिसग्गर इत्ति णायव्वो // 18 // एए चेव उ भावे, उवढे जो परेण सद्दहई। छउमत्थेण जिणेण व, उवएसरुइत्ति णायव्यो // 19 // रागो दोसो मोहो, अण्णाणं जस्स अवगयं होइ / आणाए रोयंतो, सो खलु आणाई णामं / / 20 // जो सुत्तमहिज्जतो, सुएण ओगाहई उ सम्मत्तं / अंगेण बाहिरेण व, सो सुत्तरुइत्ति णायव्यो // 21 // एगेण अणेगाई, पयाइं जो पसरई उ सम्मत्तं / उदएव्व तेल्बिंदू , सो बीयरुइत्ति णायव्यो / // 22 // सो होइ अभिगमई, सुयणाणं जेण अत्थओ दिटुं / एक्कारस अंगाई, पइण्णगं दिट्ठिवाओ य // 23 // दव्वाण सव्वभावा, सव्वपमाणेहिं जस्स उवलद्धा / सव्वाहिँ णयविही हिं, वित्थारसइत्ति णायवो // 24 // दंसणणाणचरित्ते, तवविणए सच्चसमिइगुत्तीसु / जो किरियाभावरूई, सो स्खलु किरियारुई णाम // 25 // अणभिग्गहियकुदिट्ठी, संखेवरुइत्ति होइ णायव्यो। अविसारओ पवयणे, अणभिग्गहिओ य सेसेसु // 26|| जो अस्थिकायधम्मं, सुयधम्मं खलु चरित्तधम्म च / सद्दहइ जिणामिहियं, सो धम्मरुइत्ति णायव्वो // 27 // परमत्थसंथवो वा, सुदिट्ठपरमत्थसेवणा वावि / वावण्णकुदंसणवजणा, य सम्मत्तसद्दहणा // 28|| णस्थि चरित्तं सम्मत्तविहणं, दंसणे उ भइयव्वं / सम्मत्तचरित्ताई, जुगवं पुव्वं व सम्मत्तं // 29 // णादंसणिस्स णाणं, णाणेण विणा ण हुँति चरणगुणा / अगुणिस्स णस्थि मोक्खो, णत्थि अमोक्वस्त णिव्वाणं // 30 // णिस्संकिय णिक्कंखिय, णिवितिगिच्छा अमूढदिट्ठी य / उवबूह थिरीकरणे, वच्छल्ल पभावणे अट्ठ // 31 // सामाइयत्थ पढम, ओवहारणं भवे बीयं / परिहारविसुद्धीयं, सुहुमं तह संपरायं च