________________ 1102 अनंगपविट्ठसुत्ताणि मजा य पुत्तो वि य णायओ या, दायारमण्णं अणुसंकमांत / / 25 / / उनिजई जीवियमप्पमाय, वणं जरा हरइ णरस्स रायं ! / पंचालराया ! क्यणं सुणाहि, मा कासि कम्माइं महालयाई // 26 // अहं पि जाणामि जहेह साहू, जं मे तुमं साहसि वकमेयं / भोगा इमे संगकरा हवंति, जे दुजया अज्जो! अम्हारिसेहिं // 27 // हत्थिण. पुरम्मि चित्ता !, दळूणं णरवई महिड्डियं / कामभोगेसु गिद्धेणं, णियाणमसुहं कडं // 28 // तस्स मे अप्पडिकंतस्स, इमं एयारिसं फलं / जाणमाणो वि जं धम्म, कामभोगेसु मुच्छिओ॥२९॥ णागो जहा पंकजलावसण्णो, दटुं थलं णाभिसमेइ तीरं / एवं वयं कामगुणेसु गिद्धा, ण भिक्खुणो मग्गमणुव्वयामो // 30 // अच्चेइ कालो तूरंति राइओ, ण यावि भोगा पुरिसाण णिच्चा / उविच्च भोगा पुरिसं चयंति, दुम जहा खीणफलं व पक्खी // 31 // जइ तंसि भोगे चइउं असत्तो, अजाइं . कम्माइं करेहि रायं ! धम्मे ठिओ सव्वपयाणुकंपी, तो होहिसि देवो इओ विउव्वी // 32 // ण तुज्झ भोगे चइऊण बुद्धी, गिद्धो सि भारंभपरिग्गहेसु / मोहं कओ एत्तिउ विप्पलावो, गच्छामि रायं ! आमंतिओ सि // 33 / / पंचालराया वि य बंभदत्तो, साहुस्स तस्स वयणं अकाउं / अणुत्तरे भुंजिय कामभोगे, अणुत्तरे सो णरए पविट्ठो // 34 // चित्तो वि कामेहि विरत्तकामो, उदग्गचारित्ततवो महेसी / अणुत्तरं संजम पालइत्ता, अणुत्तरं सिद्धिगई गओ // 35 // त्ति-बेमि // इति .. चित्तसंभूइज्जणाम तेरहममज्झयणं समत्तं // 13 // अह उसुयारिज्जं णामं चउद्दसममज्झयणं देवा भवित्ताण पुरे भवम्मि, केई चुया एगविमाणवासी। पुरे पुराणे उसुयारणामे, खाए समिद्धे सुरलोगरम्मे / / 1 / / सकम्मसेसेण पुराकएणं, कुलेसु दग्गेसु य ते पसूया / णिविण्णसंसारभया जहाय, जिणिंदमग्गं सरणं पवण्णा // 2 // पुमत्तमागम्म कुमार दो वि, पुरोहिओ तस्स जया य पत्ती / विसालकित्ती य तहे. सुयारो, रायऽत्थ देबी कमलावई य // 3 // जाईजरामच्चुभयाभिभूया, बहिं विहाराभिणिविट्ठचित्ता / संसारचक्कस्स विमोक्खणट्ठा, दट्ठण ते कामगुणे विरत्ता // 4 // पियपुत्तगा दोण्णि वि माहणस्स, सकम्मसीलस्स पुरोहियरस / सरित्तु पोराणिय तत्थ जाई, तहा सुचिण्णं तवसंजमं च / / 5 // ते कामभोगेसु असजमाणा, माणुस्स. एसु जे यावि दिव्वा / मोक्खाभिकंखी अभिजायसड्डा, तायं उवागम्म इमं उदाहु