________________ 1068 अनंगपविट्ठसुत्ताणि . त्ति णो वए // 51 // तहेव मेहं व णहं व माणवं, ण देव देवत्ति गिरं वइजा / संमुच्छिए उण्णए वा पओए, वहज वा बुट्ट बलाहयत्ति // 52 // अंलिकत्ति णं बूया, गुज्झाणुचरियत्ति य / रिद्धिमंतं णरं दिस्स, रिद्धिमंतं ति आलवे॥५३॥ तहेव साघजणुमोयणी गिरा, ओहारिणी जाय परोवघाइणी / से कोहलोहभयहासमाणओ, ण हासमाणो वि गिरं वइजा // 54 // सुवक्कसुद्धिं समुपेहिया मुणी, गिरं च दुटुं परिवजए सया। मियं अदुटुं अणुवीइ भासए, सयाण मज्झे लहई पसंसणं // 55 // भासाइ दोसे य गुणे य जाणिया, तीसे य दुटे परिवजए सया। छसु संजए सामणिए सया जए, वइज बुद्धे हियमाणुलोमियं // 56 // परिक्खभासी सुसमाहिईदिए, चउक्क. सायावगए अणिस्सिए / सणिधुणे धुण्णमलं पुरेकडं, आराहए लोगमिणं तहा परं. ॥५७॥त्ति बेमि // इति सुवक्कसुद्धी णामं सत्तममज्झयणं समत्तं // अह आयारपणिही णामं अट्ठममज्झयणं आयारपणिहिँ ल , जहा कायव्व भिक्खुणा। तं भे उदाहरिस्सामि, आणुपुट्विं सुणेह मे // 1 // पुढविदगअगणिमारुय, तणरुक्खसबीयगा। तसा य पाणा जीवत्ति, इइ बुत्तं महेसिणा // 2 // तेसिं अच्छणनोएण, णिच्चं होयव्वयं सिया। मणसा काय वक्केण, एवं हवइ संजए // 3 // पुढविं भित्ति सिलं लेखें, णेव भिंदे ण संलिहे। तिविहेण करणजोएण, संजए सुसमाहिए // 4 // सुद्धपुढवि ण णिसीए, ससरक्खम्मि य आसणे। पमज्जित्तु णिसीइजा, जाइत्ता अस्स उग्गहं // 5 // सीओदगं ण सेविजा, सिलावुटुं हिमाणि य / उसिणोदगं तत्तफासुयं, पडिगाहिज संजए // 6 // उदउल्लं अप्पणो कायं, णेव पुंछे ण संलिहे / समुप्पेह तहाभूयं, णो णं संघट्टए मुणी // 7 // इंगालं अगणिं अच्चि, अलायं वा सजोइयं / ण उंज्जिजा ण घट्टिजा, णों णं णिव्वावए मुणी // 8 // तालियंटेण पत्तण, साहाए विहुयणेण वा / ण वीइज अप्पणो कार्य, बाहिरं वावि पुग्गलं // 9 // तणरुक्खं ण छिंदिजा, फलं मूलं च कस्सई / आमगं विविहं बीयं, मणसा वि ण पत्थए // 10 // गहणेसु ण चिट्ठिजा, बीएसु हरिएसु वा / उदगंमि तहा णिच्चं, उत्तिंगपणगेसु वा // 11 // तसे पाणे ण हिंसिजा, वाया अदुव कम्मुणा / उवरओ सव्वभूएसु, पासेज विविहं जगं // 12 // अट्ठ सुहुमाई पेहाए, जाइं जाणित्तु संजए / दयाहिगारी भूएसु, आस चिट्ठ सएहि वा // 13 // कयराइं अट्ठ सुहुमाई ?, जाइं पुच्छिज संजए / इमाइं ताई मेहावी, आइक्विज