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________________ . चंदपण्णत्ती पा. 2 पा. 1 767 अद्धा केवइयं आहिताति वएजा ? ता पंचणवुत्तरे जोयणसए तेरस य एगट्ठिभागे जोयणस्स आहिताति वएजा, ता अभितराए मंडलवयाए बाहिरा मंडलवया बाहिराए मंडलवयाए अभिंतरमंडलवया एस णं अद्धा केवइयं आहिताति वएजा ? ता पंचदसुत्तरे जोयणसए आहिताति वएजा / / 18 / / पढमस्स पाहुडस्स अट्ठमं पाहुडपाहुडं समत्तं / / 18 / / पढम पाहुडं समत्तं // 1 // बिइयं पाहुडं ता कहं ते तेरिच्छगई आहिताति वएजा ? तत्थ खलु इमाओ अट्ठ पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ, तं०-तत्थेगे एवमाहंसु-ता पुरत्थिमाओ लोयंताओ पाओ मरीई आगामंसि उत्तिट्ठइ,सेणं इमं तिरिय लोयं तिरियं करेइ तिरियं करेत्ता पच्चत्थिमंसि लोयंतंसि सायंमि रायं आगासंसि विद्धंसइ एगे एवमाहंसु 1, एगे पुण एवमाहंसु-ता पुरत्थिमाओ लोयंताओ पाओ सूरिए आगासंसि उत्तिट्टइ, से णं इमं तिरियं लोयं तिरियं करेइ करित्ता पच्चत्थिमंसि लोयंतंसि सूरिए आगासंसि विद्धंसइ एगे एवमाहंसु 2, एगे पुण एवमाहंसु-ता पुरस्थिमाओ लोयंताओ पाओ सूरिए आगासंसि उत्तिट्टइ, से णं इमं तिरियं लोयं तिरियं करेइ करित्ता पच्चत्थिमंसि लोयंसि सायं सूरिए आगासं अणुपविसइ 2 त्ता अहे पडियागच्छइ अहे पडियागच्छेत्ता पुणरवि अवरभूपुरस्थिमाओ लोयंताओ पाओ सूरिए आगासंसि उत्तिट्ठइ एगे एवमाहंसु 3, एगे पुण एवमाहंसु-ता पुरत्थिमाओ लोगंताओ पाओ सूरिए पुढविकायंसि उत्तिट्टइ, से णं इमं तिरियं लोयं तिरियं करेइ करेत्ता पच्चस्थिमिल्लंसि लोयंतंसि सायं सूरिए पुढविकायंसि विद्धंसइ एगे एवमाहंसु 4, एगे पुण एवमाहंसु-ता पुरथिमाओ लोयंताओ पाओ सूरिए पुढविकायंसि उत्तिट्ठइ, से णं इमं तिरियं लोयं तिरियं करेइ करेत्ता पचत्थिमंसि लोयंतंसि सायं सूरिए पुढविकायसि अणुपविसइ अणुपविसित्ता अहे पडियागच्छइ 2 त्ता पुणरवि अवरभूपुरथिमाओ लोयंताओ पाओ सूरिए पुढविकायंसि उत्तिट्टइ एगे एवमाहंसु 5, एगे पुण एवमाहंसु-ता पुरथिमिल्लाओ लोयंताओ पाओ सूरिए आउकायंसि उत्तिट्टइ, से णं इमं तिरियं लोयं तिरियं करेइ करेत्ता पञ्चत्थिमंसि लोयंतंसि पाओ सूरिए आउकायंसि विद्धंसइ एगे एवमाहंसु 6, एगे पुण एवमाहंसु-ता पुरस्थिमाओ लोगंताओ पाओ सूरिए आउकायंसि उत्तिट्टइ, से णं इमं तिरियं लोयं तिरियं करेइ करित्ता पचत्थिमं लोयंसि सायं सूरिए आउकायंसि अणुपविसइ 2 त्ता अहे
SR No.004389
Book TitleAnangpavittha Suttani Bio Suyakhandho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1984
Total Pages746
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_jambudwipapragnapti, agam_jambudwipapragnapti, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, agam_vrushnidasha, & agam
File Size13 MB
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