SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 125
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 716 अनंगपविट्ठसुत्ताणि वट्टिभूयंति, अप्पेग० हिरण्णवासं वासिंति एवं सुवण्णरयणवइरआभरणपत्तपुप्फफलबीयमल्लगंधवण्ण जाव चुण्णवासं वासंति, अप्पेगइया हिरण्णविहिं भाइंति एवं जाव चुण्णविहिं भाइंति, अप्पेगइया चउब्विहं वज्जं वाएंति, तंजहा-तंतं 1 विततं 2. घणं 3 झुसिरं 4 अप्पेगइया चउव्विहं गेयं गायंति, तंजहा-उक्खित्तं 1 पायत्तं 2 मंदाइयं 3 रोइयावसाणं 4 अप्पेगइया चउव्विहं पढें णच्चंति,तं०-अंचियं 1 दुयं 2 आरभडं 3 भसोलं 4 अप्पेगइया चउव्विहं अभिणयं अभिणएंति, तं०-दिलृतिय पडिस्सुइयं. सामण्णोवणिवाइयं लोगमज्झावसाणियं, अप्पेगइया बत्तीसइविहं दिव्वं णट्टविहिं उवदंसेंति, अप्पेगइया उप्पयणिवयं णिवयउप्पयं संकुचियपसारियं जाव भंतसंभंतणामं दिव्वं णट्टविहिं उवदंसंतीति, अप्पेगइया तंडवेंति अप्पेगइया लासेंति, अप्पेगइया पीणेति, एवं बुक्कारेंति अप्फोडेंति वगंति सीहणायं णदंति अप्पे० सव्वाइं . करेंति,अप्पे०हयहेसियं एवं हत्थिगुलुगुलाइयं रहघणघणाइयं अप्पे०तिण्णिवि, अप्पे० उच्छोलंति अप्पे० पच्छोलंति अप्पे० तिवई छिंदंति पायदद्दरयं करेंति भूमिचवेडे दलयंति अप्पे० महया 2 सद्देणं वेंति एवं संजोगावि भासियव्वा, अप्पे हकारेंति, एवं पुकारेंति थक्कारेंति ओवयंति उप्पयंति परिवयंति जलंति तवंति पयवंति गज्नति विज्जुयायंति वासिंति"",अप्पेगइया देवुकलियं करेंति एवं देवकहकहगं करेंति अप्पे० दुहुदुहुगं करेंति अप्पे० विकियभूयाई रूवाई विउव्वित्ता पंणच्चंति एवमाइ विभासेजा जहा विजयस्स जाव सव्वओ समंता आधाति परिधावेतित्ति // 121 // तए णं से अच्चुइंदे सपरिवारे सामि तेणं महया महया अभिसेएणं अभिसिंचइ 2 त्ता करयलपरिग्गहियं जाव मत्थए अंजलिं कट्ट जएणं विजएणं वद्धावेइ 2 त्ता ताहिं इट्ठाहिं जाव जयजयसदं पउंजइ पउंजित्ता जाव पम्हलसुकुमालाए सुरभीए गंधकासाईए गायाइं लूहेइ 2 त्ता एवं जाव कप्परुक्खगंपिव अलंकियविभूसियं करेइ 2 त्ता जाव णट्टविहिं उवदंसेइ 2 त्ता अच्छेहि सण्हेहिं रययामएहिं अच्छरसातंदुलेहिं भगवओ सामिस्स पुरओ अट्ठ मंगलगे आलिहइ, तंजहा-दप्पण भद्दासण वद्धमाण वरकलस मच्छ सिरिवच्छा, सोत्थिय णंदावत्ता लिहिया अट्ठ मंगलगा।॥१॥ लिहिऊण करेइ उवयारं किं ते ? पाडल-मल्लिय-चंपगसोगपुण्णाग-चूयमंजरि-णवमालिय-बउलतिलय-कणवीरकुंदकुजग कोरंटपत्त-दमणगवरसुरभिगंधगंधियस्स कयग्गहगहिय करयलपन्भट्ठविप्पमुक्कस्स दसद्धवण्णस्स कुसुमणियरस्स तत्थचित्तं जाणुस्सेहपमाणमित्त ओहिणिकरं करेइ 2 त्ता चंदप्पभरयणवइरवेरुलियविमलदंडं कंचण
SR No.004389
Book TitleAnangpavittha Suttani Bio Suyakhandho
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1984
Total Pages746
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_jambudwipapragnapti, agam_jambudwipapragnapti, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, agam_vrushnidasha, & agam
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy