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________________ सटीकश्रावकप्रज्ञप्त्याख्यप्रकरणं / [ 195 ] देसे सव्वे य दुहा इक्किक्को इत्थ होइ नायब्वो। सामाइए विभासा देसे इयरम्मि नियमेण // 322 // [देशे सर्वस्मिन् च द्विधैव एकैकः अत्र भवति ज्ञातव्यः / सामायिके विभाषा देशे इतरस्मिनियमेन // 322 // ] देश इति देशविषयः सर्व इति सर्व विषयश्च द्विधा द्विप्रकार एकैक आहारपौषधादिरस्त्र प्रवचने भवति ज्ञातव्यः सामायिके विभाषा कदाचित्क्रियते कदाचिन्नेति देशपौषधे, इतरस्मिन् सर्वपौषधे नियमेन सामायिकं अकरणात्मवंचनेति। भावत्थो पुण इमो-आहारपोसहो दुविहो, देसे सव्वे य. देसे अमुगा विगती आयंबिलं वा एक्कसि वा दो वा सव्वे चउविहो आहारो अहोरत्तं पञ्चक्खाओ। सरीरसकारपोसहो न्हाणुव्वट्टणवन्नगविलेवणपुष्फगन्धतंबोलाणं वत्थाहरणपरिचागो य, सो दुविहो देसे सव्वे य, देसे अमुगं सरीरसकारं न करेमि सव्वे सव्वं न करेमि त्ति / बंभचेरपोसहो वि देसे सव्वे य देसे दिवारत्तिं वा एक्कसि वा दो वारे त्ति सव्वे अहोरत्तं बंभचारी भवति / अव्वावारपोसहो वि दुविहो देसे सव्वे य देसे अमुगंमि वावारंमि सव्वे सव्वं वावारं चेव हलसगडघरकम्माइयं ण करेमि / एत्थ जो देसपोसहं करेइ सो सामायिक करेड़ वा ण वा जो सव्वापोसहं करेइ सो नियमा कयसामाइओ जइ ण करे तो णियमा वंचिज्जइ कहिं चेइयघरे साहु
SR No.004383
Book TitleShravak Pragnpti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendravijay
PublisherSanskar Sahitya Sadan
Publication Year1972
Total Pages246
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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