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________________ सटीकश्रावकप्रज्ञप्त्याख्यप्रकरणं / [ 177 ] विही जइ परंपरभयं णत्थि जइ विय केणइ समं विवाओ णत्थि जइ कस्सइ न धरेइ मा तेण अच्छविगच्छिथि कडिढहिइ य धारणगं दठूण गेण्हइ मा भज्जिहिइ जइ वावारंण करेइ ताहे घरे चेव सामाइयं काऊण वच्चइ पंचसमिओ तिगुत्तो इरियाउवउत्तो जहा साहू भासाए सावज्जं परिहरंतो एसणाए कटुं लेटुटुं वा पडिलेहिउँ पमजिउं एवं आयाणे निक्खिवणे खेलसिंघाणए न विगिंचइ विगिचंतो वा पडिलेहेइ पमज्जिय जत्थ चिट्ठइ तत्थ तिगुत्तिणिरोहं करेइ, एयाए विहीए गंता तिविहेण नमिऊण साहुणो पच्छा सामाइयं करेइ, करेमि भंते सामाइयं सावज जोगं पञ्चक्खामि दुविहं तिविहेणं जाव साई पज्जुवासामित्ति काऊण पच्छा इरियावहियं पडिक्कमइ पच्छा आलोएत्ता वंदइ आयरियाइ जहारायणियाए पुणो वि गुरुं वंदित्ता पडिलेहिता निविट्ठो पुच्छइ पढइ वा एवं चेइएसु वि जया सगिहे पोसहसालाए वा तत्थ नवरि गमणं णत्थि / जो इढिपत्तो सो सविड्ढीए एइ तेण जणस्स आढा होइ आढिया य साहुणो सुपुरिसपरिग्गहेणं जइ सो कयसामाइओ एइ ताहे आसहत्थिमाइजणेणय अधिगरणं वडढइ ताहे ण करेइ कयसामाइएण य पाएहिं आगंतव्वं तेण ण करेइ आगओ साहुसमीवे करेइ जइ सो सावगो तो ण कोइ उठेइ अह अहाभद्दओ जइपूया कया 12
SR No.004383
Book TitleShravak Pragnpti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendravijay
PublisherSanskar Sahitya Sadan
Publication Year1972
Total Pages246
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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