________________ 36 सुभाषितसूक्तरत्नमाला लक्खिगसहिपणतीस, सहस्सदुसयदुअपलिअं देवाउं / बंधइ अहियं जीवो, पणवीसूसासउस्सग्गे // 24 // छट्टहमदसमदुवालसेहिं, अबहुसुअस्स जा सोही / इत्तो अ अणेगगुणा, सोही नाणिस्स जिमिअस्स // 25 // श्रीशान्तिनाथादपरो न दानी; दशार्णभद्रादपरो न मानी / श्रीशालिभद्रादपरो न भोगी, श्रीस्थूलभद्रादपरो न योगी // 26 // यतः पूर्व श्रुतज्ञानं, संयमश्च ततः परः [श्लोकार्थः] अजिर्ण तपसः क्रोधो, ज्ञानाजीर्णमहङ्कृतिः। परतप्तिः क्रियाऽजीर्ण, अनाजीर्ण विसूचिका // 27 // पूआ जिणिंदे सुरई वएसु, जत्तो य सामाइयपोसहेसु / दाणं सुपत्ते सयणं सुतिस्थे, सुसाहुसेवा सिवलोयमग्गो // 28 // आसन्ने परमपए, पावेयध्वंमि सयलकल्लाणे।। जीवो जिणिंदभणियं, पडिवज्जइ भावओ धम्मं // 29 // अस्मादृशां प्रमादग्रस्तानां चरणकरणहीनानाम् / अब्धौ पोत इवेह, प्रवचनरागः शुभोपायः॥३०॥ विषयानुबन्धबन्धुर-मन्यन्न किमप्यहं फलं याचे। किन्त्वेकमिह जन्मनि, जिनमतरागं परत्राऽपि // 31 // शास्त्राभ्यासो जिनपदनतिः संगतिः सर्वदायेंः, सवृत्तानां गुणगणकथा दोषवादे च मौनम् / सर्वस्यापि प्रियाहितवचो भावना चात्मतत्त्वे, सम्पद्यन्तां मम भवभवे यावदाप्तोऽपवर्गः // 32 //