________________ 'भावसूक्तानि त्यक्तसङ्गो जीर्णवासा, मलक्लिन्नकलेवरः। भजन माधुकरी वृत्ति, मुनिचर्या कदा श्रये // 14 // त्यजन् दुःशीलसंसर्ग, गुरुपादरजः स्पृशन् / कदाऽहं योगमभ्यस्यन् , प्रभवेयं भवच्छिदे // 15 // महानिशायां प्रकृते, कायोत्सर्गे पुरावहिः। स्तम्भवन् स्कन्धकषणं, वृपाः कुर्युः कदा मयि // 16 // बने पद्मासनासीन, क्रोडस्थितमगार्भकम् / कदाऽऽवास्यन्नि वक्त्रे मां, जरन्तो मृगपृथपाः॥१७॥ शत्री मित्र तणे स्त्रैणे. स्वर्णेऽश्मनि मणौ मृदि। मोक्षे भवे भविष्यामि निर्विशेषमतिः कदा // 18 // क्रियाशून्याय या भावो. भावशून्यस्य या क्रिया। अनयोरन्तर दृष्टं, भानु-खद्योतयोरिव // 19 // मेरुप्स मनिमयमा य, जतियमित्तं तु अंत होइ। भावस्थय-वायचे, नियं अंतरं जाण // 20 // उकोसं दम, आराहिय जाइ अच्चुयं जाव / भावस्थरण पाव, अंतामुह नग निव्याणं // 21 // चित्तरत्नमविजष्ट, आन्दरं धनमुच्यते / यस्य तन्मुषित हास्तिस्य शिष्टा विपत्तयः // 22 // रगुणवीसं लक्खा, देसट्टिसहस्सदुसयसत्तहिपलियाई देवाउं, वंधइ नवकारउस्सग्गे॥२३॥