________________ सुभाषितसूक्तरत्नमाला सदा पश्चाश्रवासक्ता, अजिताक्षा मदोद्धताः। अपात्राणि भवन्त्यत्र, तत्त्वमार्गपराङ्मुखाः॥१६॥ मिथ्यादृष्टिसहस्रेषु, वरमेको ह्यणुवती। अणुव्रतिसहस्रेषु, वरमेको महाव्रती // 17 // महाव्रतिसहस्रेषु, वरमेको जिनाधिपः। जिनाधिपसमं पात्रं, न भूतं न भविष्यति // 18 // उत्तम पत्तं साहू, मज्झिमं पत्तं तु सावया भणिया। अविरयसम्मदिट्टी, जहन्नं पत्तं मुणेयव्वं // 19 // आने निम्बे सुतीर्थे कचवरनिचये शुक्तिमध्येऽहिवक्त्रे, औषध्यद्रौ विषद्रौ गुरुशिरसि गिरौ पाण्डुभूकृष्णभूम्योः। इक्षुक्षेत्रे कषायद्रुमवनगहने मेघमुक्तं यथाऽम्भः, तद्वत्पात्रेषु दत्तं गुरुवदनभवं वाक्यमायाति पाकम् // 20 // मध्यस्थो बुद्धिमान , जात्यादिगुणसंगतः। श्रुतवित् च यथाशक्ति, श्रोता पात्रमिति स्मृतः // 21 // 7 कुपात्रसूक्तानि पत्ते वसंतमासे, रिद्धिं पावन्ति सयलवणराई / जं न करीरे पत्तं, ता किं दोसो वसंतस्स ? // 1 // उइमि सहस्सकरे, सलोयणो पिच्छई सयललोओ। जन उलूओ पिच्छइ, सहस्सकिरणस्स को दोसो ? // 2 //