________________ सुभाषितसूक्तरत्नमाला धम्मियजणेहिं विणा न तित्थं, तित्यं विणा न धम्मो। ता साहम्मियवच्छल्लेण, तित्थसंघाणणा नूणं // 31 // साहम्मियम्मि पत्ते, नियगेहे जस्स होइ न हु नेहो / जिणसासणभणियमिण, सम्मत्ते तस्स संदेहो // 32 // तम्हा सव्वपयत्तेणं, जो नमुक्कारधारओ। . सावओ सो वि दट्ठव्वो, जहा परमबंधवो // 33 // प्रसन्ना दृग् मनः शुद्धं, ललिता वाग नतं शिरः। सहजार्थिष्वियं पूजा, विनापि विभवं सताम् // 34 // 6 पात्रसूक्तानि खलोऽपि गवि दुग्धं स्याद् , दुग्धमप्युरगे विषम् / पात्रापात्रविशेषेण, तत्पात्रे दानमुत्तमम् // 1 // पाकारणोच्यते पापं, त्रकारस्त्राणवाचकः। अक्षरद्वयसंयोगे, पात्रमाहुर्मनीषिणः (मनस्विनः) // 2 // यानपात्रे भवाम्भोधौ, या न पात्रेऽहंदादिके। कृतार्थीक्रियते लक्ष्मी-रलक्ष्मीः सा न संशयः // 3 // मूर्खतपस्वी राजेन्द्र !, विद्वांश्च वृषलीपतिः। उभौ तौ तिष्ठतो द्वारे, कस्य दानं प्रदीयते // 4 // सुखासेव्यं तपो भीम !, विद्या कष्टदुराचरी / विद्वांसं पूजयिष्यामि, तपोभिः किं प्रयोजनम् ? // 5 //