________________ नमस्कारमहामन्त्रमाहात्म्यसूक्तानि किमत्र मन्त्रौषधिमूलिकाभिः, किं गारुड-स्वर्गमणीन्द्रजालैः। स्फुरन्ति चित्ते यदि मन्त्रराज-पदानि कल्याणपदप्रदानि // 9 // अयं पश्चनमस्कारः, परविद्याबलं खलु / हृदये ध्यातमात्रोऽपि, निहन्तीह न संशय // 10 // त्रिविष्टपेऽपि तम्नास्ति, मन्त्रादस्माद्भवेन यत् / समं स्याद् विषमं वापि, विषमं सममप्यही // 11 // आनयनात्मतादात्म्यं; पञ्चापि परमेष्ठिनः। मासिकानशनो मृत्वा, गाङ्गेयः प्रापदच्युतम् // 12 // श्रीमन्नमस्कारपदानि सर्व-सिद्धान्तसाराणि नवापि नूनम् / . आद्यानि पश्चातिमहान्ति तेषु, मुख्यं महाध्येयमिहामनन्ति // 13 // संग्राम - सागर - करीन्द्र - भुजङ्ग - सिंहदुर्व्याधि - वह्नि - रिपु - बन्धनसंभवानि / चौर - ग्रह - भ्रम - निशाचर - शाकिनीनां, नश्यन्ति पञ्चपरमेष्ठिपदैर्भयानि // 14 // एसो मंगलनिलओ, भयविलओ सयलसंघसुहजणओ। नवकारपरममंतो, चिंतियमित्तो मुहं देइ // 15 // अणेगजम्मंतरसंचियाणं, दुहाण सारीरिय-माणसाणं / कत्तोअ भव्वाण हविज्जनासो, न जाव पत्तो नवकारमंतो // 16 // पंचनमोकारे वि हु, अरिहंतपयं पयंपियं पढमं / ....... भत्तीय तम्मि विहिया, संसारूच्छेयणं कुणइ // 17 //