________________ 426 सुभाषितसूक्तरत्नमाला भोअणसमये सयणे, विवोहणे पवेसणे भये बसणे। पंचनमुक्कारं खलु, समरिज्जा सव्वकालं पि // 18 // तियसिंद-नरिंदनम-सियाण निद्दढघाइकम्माण / निज्जियरिउनिवहाणं, नमो नमो जिणवरिंदाणं // 19 // तिहुयणसिहरंमि पइटियाण निवियमलकलंकाणं / सासयसुहनिलयाणं, नमो नमो सबसिद्धाणं // 20 // पंचविहायारसमुद्द-पारपत्ताण गुणमयंकाणं / आयरियाणं च तहा, नमो नमो नाणसूरीणं // 21 // सयलसुओयहिपारं-गयाण उवएसदाणदक्खाणं / निच्चमुवज्झायाणं, नमो नमो खवियमोहाणं / / 22 / / अइदुद्धराइं पंच वि, धारंति महव्वयाई जे मुणिणो / तियलोयबंधवाणं, नमो नमो सव्वसाहणं / / 23 / / इय 'पंचमहापरमिटि-संथवं' जे कुणंति भावेण / पावंति ते अपावा, अजियमुहं निब्बुइं अइरा // 24 / / बारसगुण अरिहंता, सिद्धा अट्टेव सूरि छत्तीसं / उवज्झाया पणवीसं, साहू सगवीस अट्टसयं // 25 / / जेणेस नमुक्कारो, सरणं संसारसागरपडियाणं / कारणमसंखदुक्ख-क्खयस्स हेउ सिवपहस्स य // 26 // नवकारओ अन्नो, सारो मंतो न अस्थि तियलोए। तम्हा हु अणुदिणं चिय, पढिअव्वो परमभत्तिए // 27 //