________________ सामान्योपदेशसूक्तानि न पाणिभ्यामुभाभ्यां तु, कण्डयेज्जातु वै शिरः। न चाभीक्ष्णं शिरःस्नानं, कार्य निष्कारणं नरैः // 15 // वैरागि आत्माए अन्यनी निंदा न करवी किं नाम सम्यग्वैराग्ये-ऽन्येषां दोषप्रघोषणैः। भवाभिनन्दिनामेव, परिवादे विदग्धता // 16 // निर्धननी साथे कोईने मित्राई होती नथी वनानि दहतो बढ़ेः, सखा भवति मारुतः। स एव दीपनाशाय, कुशे कस्याऽस्ति सौहृदम् // 17 // चक्षुगोचर वस्तु जोवाथी दोष नथी पण रागद्वेषथी दोष . लागे छे अशक्यं रूपमद्रष्टुं, चक्षुगोचरमागतम् / राग-द्वेषौ तु यौ तत्र, तौ बुधः परिवर्जयेत् // 18 // योग्यायोग्यनी परीक्षा करीने पछी देशना आपवी बालादिभावमेवं, सम्यग्विज्ञाय देहिनां गुरुणा। सद्धर्मदेशनाऽपि हि, कर्तव्या तदनुसारेण // 19 // . गंभीरतानी ओळखाण यस्य प्रभावादाकाराः, क्रोध-हर्ष-भयादिषु / भावेषु नोपलभ्यन्ते, तद्गाम्भीर्यमुदाहृतम् // 20 // . भोगनी भयंकरता आत्मसुखार्थ क्रियते भोगः, पश्चादेति शरीरे रोगः / रोगे जाते मरणं शरणं, तदपि न मुञ्चति पापाचरणम् // 21 //