________________ '412 सुभाषितसूक्तरत्नमाला ____मन-वचन अने काया जेनां शुद्ध छे ते शुद्ध ज छे चित्तं समाधिभिः शुद्धं, वदनं सत्यभाषणैः। ब्रह्मचर्यादिभिः कायः, शुद्धो गङ्गां विनाप्यसो // 22 // आटलां स्थाने मौन रहेQ भूमिपतावर्थपतौ बाले, वृद्धे तपोधिके विदुषि / / योषिति मूर्ख गुरुषु, विदुषा नैवोत्तरं देयम् // 23 // __ आटली वस्तु बोजाने न कहेवी स्वकीयदारमाहारं, सुकृतं द्रविणं गुणम् / दुष्कर्म मर्म मन्त्रञ्च, परेषां न प्रकाशयेत् // 24 // निराश थइने अतिथि ज्यांथी पाछो फरे छे तेनुं पुण्य नाश पामे छे अतिथिर्यस्य भग्नाशो, गृहात्प्रतिनिवर्तते / स तस्मै दुष्कृतं दत्त्वा, पुण्यमादाय गच्छति // 25 // अंधपरंपरा करवी नही. यस्यास्ति सर्वत्र गतिः स कस्मात, स्वदेशरागेण हि याति नाशम् / तातस्य कूपोऽयमिति वाणाः, क्षारं जलं कापुरुषाः पिबन्ति // 26 // आटलानो विश्वास करवो नही बालाबला-बालिश-भूमिपाला, नटा विटा वानर-चारनार्यः / चौराश्वरा याचक-वञ्चकाच,भवन्ति नूनं क्षणरागिणोऽमी // 27 //