________________ जीवामक्रियासूतानि पंचसमिया तिमुत्ता, उज्जुत्ता संजमे तवे चरणे। वाससयंपि वसंता, मुणिणो आराहगा भणिआ // 16 // तम्हा सव्वाणुना, सव्वनिसेहो य पवयणे नत्थि / आयं वयं तुलिज्जा, लाहाकंखिव्व वाणिओ // 17 // क्रियानी महत्ता नाणं चरित्तहीणं, लिंगग्गहणं दसणविहीणं / / संजमहीणं च तवं, जो चरइ निरत्थयं तस्स // 18 // दानमादरनिर्मुक्तं, विद्या विनयवर्जिता।। तपः शमविनाभूतं, त्रयं क्लेशाय केवलम् // 19 // मुबहुंपि सुअमहीअं, किं काही चरणविप्पमुक्कस्स / अंधस्स जह पलित्ता, दीवसयसहस्सकोडीवि // 20 // ज्ञानक्रियादि गुणोमां स्वयं तैयार थइ पछी दीक्षा दानमा प्रवर्त, झानक्रियागुणेषु हि स्वयं पूर्व निष्पद्यते ततः पश्चादीशादाने प्रवर्तते // - आज्ञानुं उल्लंघन करतुं नहीं गीयस्स ण उस्मुत्ता, तज्जुत्तस्सेयरस्स वि / तहेव णियमेण चरिअव्वं जं ण जाउ आणं विलंघेइ // 21 // ज्ञान-क्रियायुक्तज स्वयं तरे अने बीजाने तारे ज्ञानी क्रियापरः शान्तो, भावितात्मा जितेन्द्रियः / स्वयं तीर्थों भवाम्भोधेः, परांस्तारयितुं क्षमः // 22 //