________________ 396 सुभाषितसूक्तरत्नमाने स्वातौ शुक्तिगतं वारि, मुक्ताभं ताम्रपणिगम् / तदेव वारि चित्रायां, सर्वनाशकरं स्मृतम् // 8 // __ज्ञानविनानी क्रिया अने क्रिया विनानुं ज्ञान नकामुं छे हयं नाणं क्रियाहीणं, हया अन्नाणओ क्रिया / पासंतो पंगुलो दड्ढो, धावमाणो अ अंघओ // 9 // विषयासक्त जीवो धर्मना फलनो नाश करे छे विसयासत्ता जीवा, लहंति तिरि-निरयतिव्वदुक्स्वाई / विसयविसमोहियाणं, नासइ धम्मफलं सव्वं // 10 // एकम्मिवि पाणिवहंमि, देसियं सुमहदंतरं समये / एमेव निज्जरफला, परिणामवसा बहुविहीआ // 11 // सायणादिकनो अर्थ पमत्ते सायणा वुत्ता, अणायारस्स वायणा। चुकाणं चोयणा भुज्जो, निद्रं पडिचोयणा / / 12 / / चारज्ञानयुक्त तीर्थंकरो पण सर्वशक्तिथी तपस्यादिकमां ___ उद्यम करे छे तो वीजाओए केम न करवो? तित्थयरो चउनाणी, सुरमहिओ सिज्झियव्वयधुवंमि / अणिमूहियबलविरिओ, सबथामेसु उज्जमइ // 13 // किं पुण अवसेसेहिं, दुक्खक्खयकारणा सुविहिएहिं / होति न उज्जमिअव्वं, सपच्चवायंमि माणुसे // 14 // जियकोह-माण-माया, जियलोह-परिसहा य जे धीरा / विड्ढावासेवि ठिया, खवंति चिरसंचियं कम्मं // 15 //