________________ श्रीशानक्रियास्तानि / 395 सव्वं पि य पच्छितं, पच्चक्खाणस्स तइअ वत्थुमि / / तत्तो चिअ निज्जूढा, पकप्प-कप्पो य ववहारो // 90 // - 32 श्रीज्ञानक्रियासूक्तानि संपूर्ण क्रिया पण भावविना फलती नथी संपुण्णा वि हि किरिया, भावेण विणा ण होन्ति किरियत्ति / णियफलविगलतणओ, गेविज्जुववायणाएणं // 1 // एगमेगस्स णं भंते, मणूसस्स गेवेज्जगदेवत्ते / केवइया दबिंदिया अइया ? गोयमा ! अणंत त्ति // 2 // ता गंतसो वि पत्ता, एसा ण य दंसणं पि सिद्धति / एवमसग्गहजुत्ता, एसा ण बुहाण इत्ति // 3 // संवच्छरचाउम्मासएसु, अहाहियासु य तिहीसु / सव्वायरेण लग्गइ, जिणवरपूयातवगुणेसु // 4 // विसयपगरिसभावे, किरियामेत्तंपि बहुफलं होइ / सकिरियावि हु न तहा, इयरम्मि अवीयरागिव्व // 5 // शानसहित क्रिया संपूर्णफल आपे छे संपुण्णफलं देइय, जिणिंदमग्गंमि देसिआ किरिया / समत्तनाणसहिया, इयरा अन्नाणकट्ठफला // 6 // लघुकर्मी आत्माने क्रिया संपूर्ण फळे छे क्रियाः फलन्ति सर्वास्ताः, माणिनां लघुकर्मणाम् / कूपोद्यम: सिराभूम्यां, कृतः साफल्यमश्नुते // 7 //