________________ 394 सुभाषितसूक्तरत्नमाला चैतन्यान्वितवीर्यलब्धिकलितो भोगोपभोगैयुतो भेदच्छेदवियुक्तसर्वगतिको जीवोऽत्र संसारगः॥ 81 / / - सर्व अतिचार संज्वलनकपायना उदयथी थाय छे सव्वेविय अइयारा, संजलणाणं तु उदयओ होति / मूलछेज्जं पुण होइ, बारसण्हं कसायाणं // 82 // . छेयस्स जाव दाणं, ताव अइक्कमइ नेव एगंपि।। एगं अइकमंतो, अइक्कमे पंच मूलेण // 83 // - प्रायश्चित्तनां नाम अर्थ अने अवश्यकरणीयता आलोयणपडिक्मणे मीसविवेगे तहावि उस्सग्गे।। सवच्छे-यमूल अणवठ्ठया य पारांचियं चेव // 84 // पावं छिदंति जम्हा, पायच्छित्तंति भणइ तेण / पायेण वावि चित्तं, सोहयती तेण पच्छित्तं / / 85 // आलोयणपरिणओ, सम्मं काऊण सुविहिओ कालं / उक्कोसं तिष्णि भवे, गंतूण लम्भेज निव्वाणं // 86 // छत्तीसगुणसमन्ना-गएण, तेणवि अवस्स कायव्वा / परसक्खिया विसोही, सुदृवि ववहारकुसलेण // 87 // नवि तं सत्थं व विसं, दुप्पउत्तो व कुणति वेतालो / जं तं दुप्पउत्तं, सप्प व पमादिओ कुद्धो // 88 // जं कुणइ भावसल्लं, अणुद्धित्तं उत्तिमढकालम्मि / दुल्लहबोहीयत्तं, अणंतसंसारियत्तं च // 89 //