________________ 9 384 सुभाषितसूक्तरत्नमाला जं जी सावज्ज, न तेण जीएण होइ ववहारो। जं जीअमसावज्जं, तेण उ जीएण ववहारो // 30 // साधुनी वसतिमां स्त्रीओने न आववानु प्रमाण अट्ठमीपक्खिए मोत्तुं, वायणाकालमेव य / सेसकालंमि इंतीओ, नेआउ अकालचारीओ // 31 // श्रावकने फासुकपाणी चार जातनुं कल्पे छे सावगेण चाउलोदगं जवोदगं तुसोदगं उसिणोदगं वा पेयं // 'अग्यारमा रूद्र सत्यकि विद्याधर अग्यारमा तीर्थकर थशे महादेव इति ख्यातो, रूद्र एकादशः स च / एकादशो जिनो भावि, सत्यकिः सुव्रताभिधः // 32 // कार्तिकशेठ-आवती चउवीसीना पांचमा जिनवर द्वादशाब्दी व्रतं कृत्वा, द्वादशांगविशारदः। मृत्वा सौधर्मकल्पेऽभूत्, कार्तिकस्त्रिदशेश्वरः // 33 // ततः च्युत्वा मुराधीशो, भारतेऽमुत्र विश्रुते / आगामिन्यां चतुर्विंश-तौ जिनेन्द्रो भविष्यति // 34 // सर्वानुभूतिरित्याख्यो, महाभूतिविभूषितः / सम्यक्त्वं पालितं शुद्ध-माईत्याय प्रगल्भते // 35 // इति मुनिसुव्रतस्वामिचरित्र श्लो. 23 // 31 // 32 सर्ग-८ ____ अपकायमा छए कायनी संभावना अप्कायस्य समारम्भे, पण्णामपि विराधना। पञ्चानामन्यकायानां, यस्मादम्भसि सम्भवः // 36 //