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________________ श्रीजैनसिद्धांतसूक्तानि 383 तरेसकाोर्डसयाई, गुणनवइकोडिसहीलक्खाई। भुवणवइणं मज्ञ, जोइसवणेसु य असंखा // 24 // लक्खतिगं इगनवई-सहस्स वीसा य हुंति तिन्नि सया। जोइस--वणवज्जिआणं, तिरियं जिणबिंबसंखा इमा // 25 // श्रावकने दशवैकालिकसूत्र चारअध्ययनसार्थ अने - पांचमु अर्थमात्र भणाय. यदागमः-सावगस्स जहन्नेण अट्ठपवयणमायाओ उक्कोसेण छज्जीवणिया सुत्तओविअत्थओवि पिंडेसणाज्झयणं न सुत्तो अत्थओ पुण उल्लावेण सुणइ। देवोनी विकुर्षणा अने कृतिनी विशेषता देवैविकुर्वितं पक्ष-मेवोत्कर्षेण तिष्ठति / कृतं तु चिरमप्यर्ह-न्मूर्तिवदैवतोपरि // 26 // विदलमां क्यारे अने दहीमां क्यारे जीवउत्पत्ति थाय! मुग्गमासाइपमुहं, विदलं कच्चंमि गोरसे पडइ। ता तमु जीवुप्पत्ती, भणंति दहीए दीवरि // 27 // उत्सर्ग अने अपवाद सालंबणों पडतो वि, अप्पयं दुग्गमेवि धारेइ / इय सालंबणसेवी, धारेइ जइ असढभावम् // 28 // जीतव्यवहारनु लक्षण एवं विहाण वि इहं, चरणं दि तिलोगनाहेहिं / जोगाणं सुहो भावो, जम्हा एएसिं सुद्धो उ // 29 //
SR No.004381
Book TitleSubhashit Sukt Ratnamala Sanskrit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharanvijay
PublisherChimanlal Nathalal Gandhi
Publication Year1972
Total Pages576
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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