________________ श्रीजैनसिद्धांतसूक्तानि 381 पडिलेहपूअभोअण-विआरभूमि-पडिक्कमणकाले / मग्गे गच्छंतेण, मुणिणा मोणं विहेयव्वं // 11 // कालिक-उत्कालिक सूत्रोनी आगाढ अणागाढ समजण कालिकमागाढयोगाराध्यमुत्कालिकमनागाढयोगाराध्यमिति / अत्रार्थे श्रीनिशीथचूर्णिनिर्भालनीया। आगाढाना-- गाढयोगस्वरूपं शुद्धसम्प्रदायादवसेयम् // . गणधर नामकर्म तदा चारूप्रभृतीनां, गणभृन्नामकर्मणाम् / / स्वाम्युदिदेश त्रिपदी, स्थित्युत्पादव्ययात्भिकाम् // 12 // गणधरोना प्रश्नोतुं समर्थन. खेदच्छेदो जिनेन्द्रस्य, शिष्यौघे गुणदीपनम् / सभायां प्रत्ययो द्वाभ्यां, गणभृत्कथने गुणः // 13 // बारपर्षदा बेसवानो विचार. साधु-स्वर्गीवधु-साध्वी-सभा दिशि विभावसोः / नैऋत्यां शश्वत् भुवन-वन-ज्योतिष्कयोषितः // 14 // वायव्यां भवनपति-ज्योतिष्क-व्यन्तरामराः। ऐश्यां वैमानिका देवा, मानवा मानवीयुताः // 15 // . अरिहंतो अर्थ प्रकाशे छे. गणधरो सूत्र रचे छे. अत्थं भासइ अरहा, मुत्तं गंथंति गणहरा निउणं / सासणस्स हियट्टाए, तओ मुत्तं पवत्तेइ // 16 //