________________ 366 सुभाषितसूक्तरत्नमाला 15 श्रीसम्यग्दर्शनसूक्तानि सम्यक्त्वनु लक्षण अरिहं देवो गुरुणो, सुसाहुणो जिणमयं महपमाणं / इच्चाइ सुहो भावो, सम्मत्तं बिति जगगुरुणो // 1 // शक्यने करनार अने अशक्यनी सद्दहणा राखनार मोक्षमा जाय जं सक्कइ तं कीरइ, जं च न सकइ तयंमि सदहणा। सदहमाणो जीवो, वच्चइ अयरामरं ठाणं // 2 // सम्यक्त्वना प्रकार एगविह दुविह तिविहं, चउविहं पंचविहं दसविहं सम्म / होइ जिणणायगेहिं, इह भणियं णतनाणीहिं // 3 // समकितज धर्मनु मूळ छे सम्मत्तमेव मूलं, निदिट्ठं जिणवरेहिं धम्मस्स / एगं पि धम्मकिचं, न तं विना सोहए नियमा // 4 // सम्यक्त्वनी महत्ता जह गिरिवराण मेरू, सुराण इंदो गहाण जह चंदो / देवाण य जिणिदो, तह सम्मत्तं धम्माणं // 5 // सम्मत्तं परमो देवो, सम्मत्तं परमो गुरू / सम्मत्तं परमं मित्तं, सम्मत्तं परमं पयं // 6 // सम्मत्तं परमं झाणं, सम्मत्तं वरसारही / सम्मत्तं परमो बन्धू , सम्मत्तं सुहभूसणं // 7 //