________________ श्रीमुनिधर्मसूतानि 365 मुनिओनी सर्वचेष्टा संयम माटेज होय जा चिटा सा सव्वा, संजमहेउं ति होति समणाणं / संसत्तुवस्सए पुण, पच्चक्खमसंजमकरी // 94 // . मुनि छकारणे आहार करे वेयणवेयावच्चे, इरियट्ठाए य संजमट्ठाए। तह पाणवत्तियाए, छदं पुण धम्मचिंताए // 95 // छुहवेअणवेआवच्चे, संजमज्झाणपाणरक्खणठाए। इरियं च विसोहेउं, भुंजइ नो रूबरसहेउं // 96 // __साधु सर्वमा समभावी होय लाभालाभे सुखे दुःखे, जीविते मरणे तथा / स्तुतिनिन्दाविधाने च, साघवः समचेतसः // 97 // वीतरागो वसु ज्ञेयो, जिनो वा संयतोऽथवा / सरागोऽनुवसु प्रोक्तः, स्थविरः श्रावकोऽपि वा // 98 // . संनिधिनी समजण जे सिया सन्निहिं कामे गिही पव्वइए न से-यः स्याद्यः कदाचित्संनिधि कामयते सेवते भावतोऽसौ गृहस्थ एव न प्रबजितः न साधुः 'संनिधीयते नरकादिषु आत्मा अनया इति संनिधिः //