________________ 364 सुभाषितसूक्तरत्नमाला संयमनो सार निर्वाण लोगस्स सारो धम्मो, धम्म पि नाणं सारियं विति / नाणं संजमसारं, संजमसारं च निव्वाणं // 89 // संयमनी समजण . यस्य च चारित्रविशेषविषयवीर्यान्तरायलक्षणानां यतनाऽऽवरणीयानां कर्मणां क्षयोपशमः तस्य प्रतिपन्नचारित्रातिचारपरिहारार्थयतनाविशेषलक्षणः संयमो नान्यस्य // ___ सामुद्रिकने कहे ते साधु न कहेवाय जे लक्षणं च सुविणं च, अंगविजं च पउंजंति / न हु ते समणा वुच्चंति, एवं आयरिएहिं अक्खायं // 90 // वेशविडंबक, दगपागं पुष्फफलं, अणेसणिज्ज गिहत्थकिच्चाई / अजया पडिसेवंती, जइ वेसविडंबगा नवरं // 91 // प्रासुक एषणीय अने कल्पनीय आहारज साधुने कल्पे एषणीयं कल्पनीयं, प्रासुकं च जगत्पत्तिः। आदत्तेऽन्नादि तन्मुग्धा, भवन्तो न हि जानते // 92 // सात मांडलीनां नाम मुत्ते अत्थे भोयण-काले आवस्सये य सज्झाए। संथारए वि अ तहा, सत्तेया मंडली हुंति // 93 //