________________ 360 सुभाषितसूक्तरत्नमाला दीक्षानी योग्यता यस्य वीर्यान्तरायचारित्रमोहभेदानां धर्मान्तरायाणां क्षयोपशम: तस्यैवाऽगारत्यागलक्षणा प्रव्रज्या नान्यस्य // ग्रहण-आसेवन शिक्षा गहणासेवणतदुभय-भेएहिं सा भवे तिहा तत्थ / नाणभाससरूवा, सिक्खा बुञ्चति गहणसिक्खा // 64 // सा य जहन्नेण जइ-स्स सावगस्स पडुच्च सुत्तत्थे / अट्ठउ पवयणमाया, जाव भवे तुच्छमइणो वि // 65 // उक्कोसेण साहुस्स, सुत्तओ अत्थो य होति इमा। पवयणमायाइ-बिंदुसारपुवावसाणं ति // 66 // जाव छज्जीवणियं, उक्कोसा सुत्तो गिहत्थस्स / अत्थं पडुच्च पिंडेसणावसाणा सा किर जेण // 67 // पवयणमायाहिगम, विणा वि सामाइयं कह करेज्जा / छज्जीवणियानाणं, विणा य कह रक्खइ जीवे // 68 // पिंडेसणत्थविन्नाण-विरहिओ कह व देज्जा समणाणं / फासुयएसणियाई, पाणासणवत्थपत्ताई // 69 // साधुधर्म माटेनी योग्यता कुल-जातिबलोपेत:, शान्तो दान्तो जितेन्द्रियः / श्रद्धालुगुरुभक्तश्च, क्षमावान् विनयी नयी // 70 // अमर्मवादी निर्मायः, पराऽपायप्ररक्षकः / इत्यादिगुणसम्पन्नो, यतिधर्माय कल्पते / / 71 // (युग्मम्)