________________ श्रीमुनिधर्मसूक्तानि पिंडने नहि शोधनार मुनि अचारित्री छे पिंडं असोहयंती, अचरित्ति एत्थ संसयो नत्थि / चरित्तम्मि असंते, सव्वा दिक्खा निरत्थयत्ति // 58 // जंमि निसेविजंते, अइआरो होज्ज कस्सइ कयाइ / तेणेव य तस्स पुणो, कयाइ सोही हवेज्जाहि // 59 // 2-4-5 मुं चारित्र बावीस तीर्थकरना तथा महाविदेहना साधुओने होय. तिम्नि य चरित्ताई, बावीसजिणाण एरवए भरहे / तह पंचविदेहेसु, बीय तइयं च नवि होइ॥६०॥ चारित्रनी बराबर कोइ वस्तु नथी मुनिरुचे चारित्रस्या-ऽसाध्यमस्ति न किश्चन / कल्पकामधुकूचिन्ता-रत्नातीतप्रभावतः // 61 // चारित्ररत्नान्न परं हि रत्नं, चारित्रलाभान्न परो हि लाभः / चारित्रवित्तान्नपरं हि वित्तं, चारित्रयोगान्न परो हि योगः।६२॥ ___उत्तम पुरुषोना सहवासथी पापबुद्धि नष्ट थाय धन्यास्ते त्रिजगत्पूज्यास्तीर्थेशा मुनयोऽपि च / येषां सन्निधौ प्राणिनां, पापबुद्धिः पलायते // 63 // _ स्वर्ग अने मोक्षनु कारण तत्त्वतस्तु प्रशस्तरागस्यैव स्वर्गहेतुत्वाचारित्रस्य तु मोक्षहेतुत्वात् / / मोक्षहेतोः संसारहेतुत्वायोगादिति सूक्ष्ममीक्षणीयम्।