________________ श्रीमुनिधर्मसूक्तानि 355 इत्येवं कुर्वन्नुभयदोषपरिहारी जन्तूनामाश्वासभूमिर्भवति // __ (आ. दी. टी. पृ. 189) माहणेण मइमया जामा तिम्नि उदाहिया // (आ. दी. टी. पृ. 189) चारित्रनां उपकरणो पत्तं पत्ताबंधो, पायठवणं पायकेसरिया। पडलाइ रयत्ताणं, गुच्छउ पायनिज्जोगो॥३३॥ तिन्नेव य पच्छागा, रयहरणं चेव होइ मुहपत्ती। एसो दुवालसविहो, उवही जिणकप्पियाणं तु // 34 // एए चेव दुवालस, मत्तग अइरेग चोलपट्टो अ। एसो उ चउदसविहो, उवही पुण थेरकप्पंमि // 35 // जिणा बारस रूवाणि, थेरा चउदस रूविगो। अजाणं पणवीसं तु, अउड्ढं उवग्गहो // 36 // मुहपोत्ति चोलपट्टो, कप्पतिगं दो निसिज्जा रयहरणं / संथारुत्तरपट्टो, दसपेहा उग्गए सूरे // 37 // अन्ने भणंति एक्कारसमो दंड इति / - पल्ला संबंधी त्रण मतो गिम्हामु तिन्नि पडला, चउरो हेमंते पंच वासासु / गिम्हासु होन्ति चउरो, पंच य हेमंते छच्च वासासु / गिम्हासु पंच पडला, छप्पुण हेमंते सत्त वासासु //